Thursday, April 2, 2009

कहा तक बंटेंगे हम..


दोस्तों नमस्कार॥ मुफ्त मैं मिली आज़ादी का आज हम देश को क्या लोटा रहे हैं। कुछ नही, हमें अपने अधिकार का पुरा धयान हैं लेकिन कर्तय का नही। कभी हिंदू मुस्लिम के नाम पर बंटे, इसके बाद लगातार बंट हे जा रहे हैं, राजस्थान ,गुजरात,महाराष्ट्र प्रांतवाद के नाम पर, जात के नाम पर, सहर के नाम पर ,गली मुहलो के नाम पर ,फ़िर अपनी हे जात मैं गोत्र के नाम पर,.....कब तक कहा तक। इन नेताओ ने अपने फायदा के लिए आरक्षण का नाम दिया और इंसानों को बांट दिया , मैं ओ बी सी से आता हु, परुन्तु ऐसे कई विधार्थीं हैं जो जनरल केटेगरी मैं होते हुए एक्साम मैं अधिक मार्क्स लाते हैं और वो अपने सही मुकाम पर इसलिए नही पहुच पाते है क्योंके उनका अधिकार कोई और मार ले गया हैं, दो डॉक्टर जिनमे एक जेनेरल हैं जो ९०% मार्क्स लता हैं और दूसरा आरक्षित ५५ % मार्क लाता हैं ,अब आप हे सोचे के जनता का इलाज किस प्रकार से होगा। धरम के नाम पर इंसानों को इस कदर तोड़ दिया हैं की इंसानियत तो बिल्कुल मर चुकी हिं, बाहर के आंतकवादी से हमें उनता खतरा नही हैं जितना देश के अन्दर बैठे अपनों से हैं।यह अब हमको समजना होगा के अपना कोन और पराया कोन हैं, वोटो के खातिर कहे या अपना प्रभुत्व को मजबूत करने के लिए हम परिवार तक मैं टूट जाते हैं, संयुक्त परिवार के परिभाषा तो लोग भूलते ही जा रहे हैं,अपनापन ख़तम होता जा रहा हैं, नई पीढी का माता पिता का आदर सत्कार कम होता जा रहा हैं बस वो अपनी दुनिया मैं ही जी रहे हैं, जिमेदारी का अहसास हे नही रहा हैं उनमे..एक रात मैं लखपति बनना कहते हैं,इसके लिए कोई भी तरीका हो,बिना सोचे समजे फ़ैसला कर लेते हैं, उसके पीछे परिवार छाए कितना भी परेशांन क्यों न हो. आज के यूवा को अहसास ही नही हैं की उनके सामने कितना( कोम्पिटीशन)प्रतिस्पर्धा हैं,मेरे शहर मैं रिज़र्वेशन होने से ऐसे बहार के व्यक्ति चुनाव लड़ रहे हैं जिन्हें मैं जानता हे नही,लकिन वोट देना मजबूरी हैं ,मेरा ऐसा लिखने का कारन यह स्पष्ट हैं के प्रतिभा दब रही हैं एवं मुश्किलें बढ़ रही हैं। राजनीती व्यापार का रूप ले रहा हैं,और हम लगातार अलग अलग टुकडो मैं बंट रहे हैं.कई राज्य ,भाषा,धरम होने के बावजूद भी हमारी संस्कृति और संस्कार इस कारण जिन्दा हैं की अभी तक परिवार मैं बड़े बुजुगो का आश्रीवाद हैं। सारी दुनिया हिंदुस्तान को देख रही हैं, हमारी एकता और अखन्ड्ता से जलते हैं, भाई भाई से लड़ता हैं तो वो खुश होते हैं,....अब भी समय हैं की हम अपने देश के लिए कुछ करे। "देश हमें देता हैं सब कुछ,आओ हम भी कुछ देना सीखे " देश के यूवा देश के मुख्या धारा से जुडो, ..पढ़े लिखे यूवा राजनीती से जुडो, देश को बनाओ, अच्छा पढ़ कर अपनी प्रतिभा को विदेश मैं मत बेंचो, माता पिता बुजुर्गो का सम्मान कर देश की विरासत,संस्कार,संस्कृति को बचाओ.धर्म के नाम पैर जुलुसो मैं भीड़ मत बनो, अपनी पहचान स्वमं बनो ,आप देश की अमानत हो,आप हे भविष्य हो....आपकी जय हो।
संजय .

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