आओ दोस्त बनाये.....
दोस्तों नमस्कार...
अब मैं कुछ पारिवारिक माहोल मै आकर कर आपसे बात करता हु और रिश्तो पर अपनी कुछ राय रखता हु, मेरे ब्लॉग आपको कैसे लग रहे हैं यह मैं नहीं जानता परन्तु सालो से दबी पड़ी मेरी इस इच्छा को ब्लॉग वाले ने रास्ता दे दिया के मैं कुछ न कुछ लिखता ही रहू... कोशिश करता रहूँगा के हर दिन कुछ न कुछ नया हो...एक बात और भी यह हैं की ब्लॉग सभी के लिए हैं इसलिए इसमें ऐसे ही बाते लिखने चाहिए जो के समस्त लोगो के लिए हो...किसी एक व्यक्ति के निजी जिन्दगी की नहीं हो...अगर निजी जिन्दगी की हो तो या कोई प्रेरणा दैने वाली या समाज को एक सूत्र मैं बाँधने वाली हो तो चलेगा नहीं दोडेगा भाई....माफ़ करना भाई विषय से भटक गया ...आजकल दोस्तों पारिवारिक माहोल मैं अपनापन और प्यार की कमी दिनों दिन बढती जा रही हैं, खून के रिश्ते मैं खटास बदती जा रही है,सयुक्त परिवार अब अलग होते जा रहे हैं, कोई भी एक साथ एक ही जाजम पर बैठ कर खाना नहीं खाते हैं और ना ही अपने दुःख सुख एक दुसरे को सुना कर उनका समाधान ढुढते हैं..लोगो मैं अपने लोगो मैं आत्मीयता नहीं रही हैं...जिन्दगी की भागम भाग मैं पैसा कमाने के चक्कर मैं,माता पिता, संस्कार,विचार,और और अपनों को खोते जा रहे हैं...आम आदमी काम करते करते थक गया हैं.. जैसे के इस दुनिया मैं वो अकेला हे हैं कोई उसका संगी साथी नहीं हैं..ऐसा इसलिए हो रहा हैं के एक तो आदमी के उम्मीदे ज्यादा हैं और आय के स्त्रौत कम हैं..महत्वकांस्क्षा बढ रही हैं, बरोबरी की होड़ लगी हुई हैं...एक दुसरे को पीछे छोड़ देना चाहते हैं, कोई किसी के बात सुनने वाला नहीं हैं,और "लोग क्या कहेगै और ठीक नहीं लगैगा या लगता हैं " इस दो सामाजिक वाक्यों मैं इन्सान पिसता ही जा रहा हैं...खर्चे बढ रहे हैं..ऋण पर ब्याज़ बढ रहा हैं...चुकाने का साधन नहीं हैं...लोन चुकाने के लिए फिर लोन लेना पद रहा हैं...पूंजीपतियों के बीच आज आम आदमी फंस गया हैं...ऐसे मैं एक ऐसा रिश्ता हैं जहा इन्सान अभी धर्म,जाती,खून के रिश्ते को छोड़कर नया रिश्ता बनाता हैं और वो पवित्र रिश्ता हैं """दोस्त"""
जहा वो अपनापन,प्यार,आत्मियकता,परिवार,अपनी दिल की बात सुनने वाला, अपने सुख दुःख को बांटने वाला ,और परिवार का एक नया सदस्य को पाता है, दोस्ती के कई मायने है,वो अलग अलग कई रूप हमारे पास होती हैं परन्तु इन्सान अपने अनुसार उसे ढुंढ ही लेता हैं और उसके साथ ढल जाता हैं जबकि वो कुदरत के हाथो नहीं ,खून के रिश्तो से नहीं खुद इन्सान के हाथो से ही बनी होती है ,जिसका अच्छा बुरा उसको पता होता हैं ,वो सामने वाले दोस्त को जानता हैं,उसकी भावना विचार को जानता हैं विचारो मै तालमेल होता हैं,एक दुसरे के काम मैं सहयोग करते हैं ...दोस्ती एक ऐसा रिश्ता ही होता है...
जहा वो अपनापन,प्यार,आत्मियकता,परिवार,अपनी दिल की बात सुनने वाला, अपने सुख दुःख को बांटने वाला ,और परिवार का एक नया सदस्य को पाता है, दोस्ती के कई मायने है,वो अलग अलग कई रूप हमारे पास होती हैं परन्तु इन्सान अपने अनुसार उसे ढुंढ ही लेता हैं और उसके साथ ढल जाता हैं जबकि वो कुदरत के हाथो नहीं ,खून के रिश्तो से नहीं खुद इन्सान के हाथो से ही बनी होती है ,जिसका अच्छा बुरा उसको पता होता हैं ,वो सामने वाले दोस्त को जानता हैं,उसकी भावना विचार को जानता हैं विचारो मै तालमेल होता हैं,एक दुसरे के काम मैं सहयोग करते हैं ...दोस्ती एक ऐसा रिश्ता ही होता है... लेकिन एक अपवाद भी हैं....परिवार टूटते हैं,रिश्ते टूटते हैं तो दोस्ती भी टूटती है...सबसे तकलीफ मिलती हे , तो दोस्त से भी तकलीफ मिलती हैं ..और जब दोस्त से तकलीफ मिलती हैं ना दोस्त....तो ...तो ...बहुत तकलीफ होती है...इस तकलीफ की आवाज़ भी बहुत जोर से होती हैं..जब घर मैं आराम नहीं मिला तो इन्सान बाहर सुकुन लेने चला, मगर दोस्त भी तो इन्सान ही होते हे ना...इंसानी फितरत तो ऐसे ही हैं....क्यों की भाई.... आदम ने बुरे फल को भी तो खाया हे....हर सिक्के की दो पहलु होते हे..सुख दुखः अच्छा बुरा,सही गलत, न्याय अन्याय ,आना जाना ,.......यह सब करतुत ...उस शैतान और आदम और हव्वा की रचाई बसाई हैं..और हा बुरा तो मैं भी हु.... फिर हम अपने को क्यो दोष दे ...यह मैंने थोड़े ही किया...उस आदम ने किया....ठीक हैं ना ...अपनी गलती छुपाने को बहाना ...यह तो सालो से होते आया हैं की इन्सान हमेशा अपनी गलतियों को दुसरो पर डालता आया हैं...फिर भी हम चुप रहेंगे और लगातार हर दिन एक नया दोस्त ढुढते रहेंगे...और अपनी जिन्दगी को इस गाने की तरह गुनगुनायेंगे ..."" ए

आपका दोस्त
संजय