Wednesday, March 16, 2016

मै क्या हु ??

........फ़िर कुछ लिखने का मन किया आज, सोचा क्या और किस पर लिखू.......इन्टरनेट पर ज़ब किसी से बात करता हु, ऑरकुट, फ़ैसबुक आदि पर कोई मेरा प्रोफाइल देखता है ,जब कोई नया दोस्त बनता है,जब किसी से नईं मुलाकात होती हैं..........जब कोई मेरे से बातें या मै उस से बातें करता हु तब.........मेरा प्रोफाइल देख कर , मेरी बातें सुन कर, काफी लोग मेरे से अच्छी बातें करते हैं, मेरी तारीफ करते हैं, और मेरे बारे मैं हिम्मतवाला, एनेर्जी वाला, बड़ा लोग,अप्प्रोच वाला,या हर काम मैं माहिर ,फ़िल्म लाइन मैं दखल रखने वाला या बहोत रसूख रखने वाला, आर्टिस्ट,नेता, आदि बातें कर ते हैं तो मेरे को लगाहैं के यह अच्छे लोग जो मेरे बारे मैं सोचते हैं या कहते हैं वैसा तो मैं हु नही.......फ़िर भी जाने कु ऐसा लोगो को लगता हैं, सोचता हु, जब कभी किसी दिन इन का मेरे से किसी का काम होगा या यह मेरे से कभी कोई उम्मीद करंगे और किस्मत से मैं उस दिन या उनका कम नही कर पुजा या उस इस्तेथी मै नही होउगा के मैं उनकी उमीदो पर खरा उतर सकू, तो उस दिन मेरा क्या होगा, मैंने कभी कोई जून्थ अपने बारे मैं नही बताया, मैं जब भी किसी से मिलता हु तो सबसे पहले मेरी वस्त्विक्क और औकात से उस व्यक्ति से जरूर अवगत करा देता हु.मै कोई भगवन नही हु, या भाई मैं इतना बड़ा आदमी बड़ा आदमी नही हु जितना आप मेरे को जानते हैं, मेरे मै भी हजारो कमिया और गलतिल्या हैं, कम , क्रोध,लोभ,मोह माया, से मैं भी कभी कभी कही कही ग्रसित हु.बुरे का फल मैं भी क्या हैं..........मैं कवेल आप के तरह एक आम आदमी हु......जिन्दगी का सफर ज़ब तक लड़ते हुए ने निकला हु, जो भी कुछ हु कवेल तोकेरय खाने से मिला अनुभव है, बस इसी से अपनी जिन्दगी के सफर को तय कर रहा हु.....जो कुछ जिन्दगी मैं कुछ बना हु तो समय के मांग के अनुसार और तकलीफों को सहते हुए बन गया हु, और अभी तक यह तय नही हैं के कल मै क्या करूँगा....मैं जून्थ बोल कर अपने आप को नही बता सकता , कल कोई बात ग़लत जो जाए तो फ़िर क्या होगा.....

Tuesday, April 7, 2009

क्या आप करते हैं नए ब्लोग्गेर्स का स्वागत ?


Monday, April 6, 2009
क्या आप करते हैं नए ब्लोग्गेर्स का स्वागत ?
शुरू शुरू में जब यहाँ इस अंतरजाल से नाता जुडा था तो सब कुछ नया था, ऐसे में जाहिर था कि मैंने भी वही सुरक्षित रास्ता अपना रखा था। यानि चुपचाप आओ , अपना काम करो और निकल लो। उन दिनों से ,( ये सिलसिला अभी भी जारी है), जब भी अपना ई मेल अकाउंट खोलता तो दो नियमित मेले जरूर हुआ करती थी। एक वो सूचना जिसमें कि अपनी पोस्ट छपने की जानकारी दी होती थी दूसरी वो जिसमें लिखा होता था, अमुक तारीख को अंतरजाल से जुड़ने वाले इतने नए चिट्ठों का टिप्प्न्नी द्वारा स्वागत कीजिये। मैं भी ठीक वैसे ही करता था जैसे हम में से बहुत से लोग करते हैं या अब भी कर रहे होंगे। बिना पढ़े ही डीलीट कर दिया।किंतु पिछले दिनों न जाने अचानक मुझे क्या हुआ कि मैं उन चिट्ठों को खोल खोल कर पढने लगा। सच कहूँ तो अपने आप को ही धन्यवाद कहता रहता हूँ कि अचानक वो ख्याल मेरे मन में आ गया। तब से तो मानिये जैसे ये एक आदत सी बन गयी और मैं पहला काम यही करता हूँ। यकीन मानें दिल को इतना सुकून मिलता है जब मैं किसी को पहली टिप्प्न्नी करता हूँ, या उसे फोलो करने वाला पहला व्यक्ति बँटा हूँ। न जाने कितने सारे दोस्त बना लिए हैं अब तक। कई सारी छोटी छोटी बातें जब देखने पढने को मिलती हैं तो अपने पुराने दिन भी याद आ जाते हैं, मसलन कई ब्लोग्गेर्स अनजाने में ख़ुद के ब्लोग्स को ही फोलो करने लगते हैं। किसी को ये नहीं पता होता कि अब जब उसे कोई टिप्प्न्नी कर रहा है तो वह उसे कैसे धन्यवाद कर सकता, आदि आदि। कहने का मतलब ये कि अब हमारा परिवार, हिन्दी ब्लॉग जगत का परिवार इतना बड़ा तो हो ही चुका है कि हम में से कुछ ब्लोग्गेर्स नियमित रूप से नए ब्लोग्गेर्स का स्वागत करें और उन्हें प्रोत्साहित करें। मुझे खूब पता है जब कोई नयी नयी पोस्ट लिखता है और काफी दिन बीतने के बाद भी कोई प्रतिक्रया नहीं आती तो उसे कैसा महसूस होता है।इसलिए भाई मैंने तो ये सोच लिया है कि, बड़े भाई उड़नतश्तरी जी के पदचिन्हों पर चलते हुए नए ब्लॉगर को भरपूर समर्थन और प्रोत्साहन दूंगा, वैसे असली कारीगरी तो तब शुरू होगी, जब भगवान् की कृपा से जल्दी ही अपना कंप्युटर ले लूंगा। मेरी तो आप सबसे गुजारिश है कि नए मित्रों का स्वागत करें। यकीन मानें आपको जितनी खुशी मिलेगी उसका एहसास उन नए मित्रों को भी हो सकेगा। आशा है मेरी प्रार्थना आपको स्वीकार्य होगी.
साभार ::: writen and Posted by ajay kumar jha at 7:36 AM  

Monday, April 6, 2009

एक रिश्ता ऐसा भी....


आओ दोस्त बनाये.....
दोस्तों नमस्कार...
अब मैं कुछ पारिवारिक माहोल मै आकर कर आपसे बात करता हु और रिश्तो पर अपनी कुछ राय रखता हु, मेरे ब्लॉग आपको कैसे लग रहे हैं यह मैं नहीं जानता परन्तु सालो से दबी पड़ी मेरी इस इच्छा को ब्लॉग वाले ने रास्ता दे दिया के मैं कुछ न कुछ लिखता ही रहू... कोशिश करता रहूँगा के हर दिन कुछ न कुछ नया हो...एक बात और भी यह हैं की ब्लॉग सभी के लिए हैं इसलिए इसमें ऐसे ही बाते लिखने चाहिए जो के समस्त लोगो के लिए हो...किसी एक व्यक्ति के निजी जिन्दगी की नहीं हो...अगर निजी जिन्दगी  की हो तो  या कोई प्रेरणा दैने वाली या समाज को एक सूत्र मैं बाँधने वाली हो  तो चलेगा नहीं दोडेगा भाई....माफ़ करना भाई विषय से भटक गया ...आजकल दोस्तों पारिवारिक माहोल मैं अपनापन और प्यार की कमी दिनों दिन बढती जा रही हैं, खून के रिश्ते मैं खटास बदती जा रही है,सयुक्त परिवार अब अलग होते जा रहे हैं, कोई भी एक साथ एक ही जाजम पर बैठ कर खाना नहीं खाते हैं और ना ही अपने दुःख सुख एक दुसरे को सुना कर उनका समाधान ढुढते हैं..लोगो मैं अपने लोगो मैं आत्मीयता नहीं रही हैं...जिन्दगी की भागम भाग मैं पैसा कमाने के चक्कर मैं,माता पिता, संस्कार,विचार,और और अपनों को खोते जा रहे हैं...आम आदमी काम करते करते थक गया हैं.. जैसे के इस दुनिया मैं वो अकेला हे हैं कोई उसका संगी साथी नहीं हैं..ऐसा इसलिए हो रहा हैं के एक तो आदमी के उम्मीदे ज्यादा हैं और आय के स्त्रौत कम हैं..महत्वकांस्क्षा बढ रही हैं, बरोबरी की होड़ लगी हुई हैं...एक दुसरे को पीछे छोड़ देना चाहते हैं, कोई किसी के बात सुनने वाला नहीं हैं,और "लोग क्या कहेगै और ठीक नहीं लगैगा या लगता हैं " इस दो सामाजिक वाक्यों मैं इन्सान पिसता ही जा रहा हैं...खर्चे बढ रहे हैं..ऋण पर ब्याज़ बढ रहा हैं...चुकाने का साधन नहीं हैं...लोन चुकाने के लिए फिर लोन लेना पद रहा हैं...पूंजीपतियों के बीच आज आम आदमी फंस गया हैं...ऐसे मैं एक ऐसा रिश्ता हैं जहा इन्सान अभी धर्म,जाती,खून के रिश्ते को छोड़कर नया रिश्ता बनाता हैं और वो पवित्र रिश्ता हैं
"""दोस्त"""

जहा वो अपनापन,प्यार,आत्मियकता,परिवार,अपनी दिल की बात सुनने वाला, अपने सुख दुःख को बांटने वाला ,और परिवार का एक नया सदस्य को पाता है, दोस्ती के कई मायने है,वो अलग अलग कई रूप हमारे पास होती हैं परन्तु इन्सान अपने अनुसार उसे ढुंढ ही लेता हैं और उसके साथ ढल जाता हैं जबकि वो कुदरत के हाथो नहीं ,खून के रिश्तो से नहीं खुद इन्सान के हाथो से ही बनी होती है ,जिसका अच्छा बुरा उसको पता होता हैं ,वो सामने वाले दोस्त को जानता हैं,उसकी भावना विचार को जानता हैं विचारो मै तालमेल होता हैं,एक दुसरे के काम मैं सहयोग करते हैं ...दोस्ती एक ऐसा रिश्ता ही होता है...
जहा वो अपनापन,प्यार,आत्मियकता,परिवार,अपनी दिल की बात सुनने वाला, अपने सुख दुःख को बांटने वाला ,और परिवार का एक नया सदस्य को पाता है, दोस्ती के कई मायने है,वो अलग अलग कई रूप हमारे पास होती हैं परन्तु इन्सान अपने अनुसार उसे ढुंढ ही लेता हैं और उसके साथ ढल जाता हैं जबकि वो कुदरत के हाथो नहीं ,खून के रिश्तो से नहीं खुद इन्सान के हाथो से ही बनी होती है ,जिसका अच्छा बुरा उसको पता होता हैं ,वो सामने वाले दोस्त को जानता हैं,उसकी भावना विचार को जानता हैं विचारो मै तालमेल होता हैं,एक दुसरे के काम मैं सहयोग करते हैं ...दोस्ती एक ऐसा रिश्ता ही होता है...
लेकिन  एक अपवाद भी हैं....परिवार  टूटते हैं,रिश्ते टूटते हैं तो दोस्ती भी टूटती है...सबसे तकलीफ मिलती हे , तो दोस्त से भी तकलीफ मिलती हैं ..और जब दोस्त से तकलीफ मिलती हैं ना दोस्त....तो ...तो ...बहुत तकलीफ होती है...इस तकलीफ की आवाज़ भी बहुत जोर से होती हैं..जब घर मैं आराम नहीं मिला तो इन्सान बाहर सुकुन लेने चला, मगर दोस्त भी तो इन्सान ही होते हे ना...इंसानी फितरत तो ऐसे ही हैं....क्यों की भाई.... आदम ने बुरे फल को भी तो खाया हे....हर सिक्के की दो पहलु होते हे..सुख दुखः अच्छा बुरा,सही गलत, न्याय अन्याय ,आना जाना ,.......यह सब करतुत ...उस शैतान और आदम और हव्वा की रचाई बसाई हैं..और हा बुरा तो मैं भी हु.... फिर हम अपने को क्यो दोष दे ...यह मैंने थोड़े ही किया...उस आदम ने किया....ठीक हैं ना ...अपनी गलती छुपाने को बहाना ...यह तो सालो से होते आया हैं की इन्सान हमेशा अपनी गलतियों को दुसरो पर डालता आया हैं...फिर भी हम चुप रहेंगे और लगातार हर दिन एक नया दोस्त ढुढते रहेंगे...और अपनी जिन्दगी को इस गाने की तरह गुनगुनायेंगे ..."" एक रास्ता हैं हैं जिन्दगी,जो थम गए वो कुछ नहीं .....""
आपका दोस्त
संजय

सफल वो ही जीवन हैं,औरो के लिए जो अर्पण है ....


"" देहदान ""
राजीव गांधी के निधन के पश्चात उनकी प्रथम पुन्यतिथी की बात हैं,उदयपुर शहर मैं यूथ कांग्रेस की और से श्रर्दांजन्लि सभा का देहलीगेट सर्कल पर कार्यक्र्म रखा था,तब मैं यूथ कांग्रेस का महासचिव था, नेताओ के विचार चल रहे थी ,की सभा मैं अगले विचार की लिए वरिष्ट कांग्रेसी और शहर की जाने माने उस्ताद श्री बंशी उस्ताद का नाम उदबोधन की लिए पुकारा गया, श्री बंशी उस्ताद मेरे पिता थे,(मेरे पिता को इसी नाम से ही जाना जाता था,पहलवानी के साथ साथ एक व्यायाम शाला का सञ्चालन करना और एक गुरु के तरह अपने शिष्यों को प्रशिक्षण देने के कारण एवं समाजसेवा करना और शहर मे उच्च राजनितिक रसूख से मेरे पिता को "उस्ताद का दर्जा मिला हुआ था) अपने उदबोधन को पूरा करते ही उन्होंने ने जेब से कुछ कागज निकाल कर बताया की मैं अपने जीवन की सभी वर्ष पुरे करने की बाद अपना शरीर नोजवान विधाथीँ जो डॉक्टर की पढाई कर रहे हैं , उनको मानव शरीर की जानकारी दैने, उसको अंगो को समझने की लिए ,हॉस्पिटल मैं अपना शरीर निधन की बाद दान कर दिया है और और उसके एवज मैं यह कागज पुख्ता साबुत हैं,जो की मैंने अधिकृत रूप से रजिस्टर्ड करवा दिए हैं, उपस्थित जन समुदाय ने बंशी उस्ताद अमर हो, और जय जय कर की नारे लगाने शुंरु कर दिए, मेरे तो वहा होंश ही उड़ गए की पापा ने ने यह क्या कर दिया....सभा समाप्त होने की बाद घर पहुचने पर घर मैं बवाल मच गया मेरी माता और बहन ने रो रो कर बुरा हाल कर दिया, हमारे पुरे परिवार मे तूफान आ गया..हमारी हिन्दू संस्कृति मे यह कहा गया है की मैं जब तक शरीर को अग्नी की हवाले नहीं कर दिया जाता तब तक आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता,कोन इन्सान अपने परिवार की किसी खास सदस्य की निधन की बात करना चाहता है की उसके मरने की बाद उसको क्या करेंगे, कैसे जलाएंगे आदि आदि...हमारे तो शरीर पर जैसे पत्थर ही पद गए हो, हमारी हालत ऐसे हो गई थी की जैसे हमारे पिता की निधन अभी ही हो चुका हैं और पूरा माहोल गमगिन हो गया था....आप समझ सकते हैं उस स्थिती को.. पिता को रात भर समझाने की कोशिश करते रहे, न जाने क्या क्या हवाले दिए, कितना उनको गलत बताया की उन्होंने क्या कर दिया..वो कुछ भी नहीं बोले...हमने कहा की आप ने जो करना था वो आप कर चुके, अब हम यह कहते हैं कें भले ही आपने घोषणा कर दी हैं, परन्तु हम ऐसा नहीं करेंगे, आपके सोई ही वर्ष होने की बाद हम तो आप को हिन्दू रिवाज़ के अनुसार ही दाह संस्कार का कार्य करेंगे..चाहे कुछ भी हो जाये...हम आप की घोषणा का अमल नहीं करेंगे, हम अपने पिता की निधन की बात पिता कें ही सामने कर रहे थे, क्या स्थिती थी ..भगवान ही जाने उस समय हमारी हालत क्या थी ...पिता शांत रहे ..कुछ न बोले... दिल से बड़े दुखी लग रहे थे ..चार रोज़ बाद पुरे परिवार को बुलाया और पिता ने कहना शुंरु किया...कहा के, आप सब लोगो को जो कहना था कहा, अब मेरी सुन लो, यह मेरा जीवन हैं, मेरा शरीर है ,मेरी इच्छा हैं, मेरा विचार हैं और मेरी घोंषणा है, मेरी मृत्यु के बाद आप परिवार वाले मेरे साथ क्या व्यवहार करेंगे मुझे नहीं मालूम, चाहे तो आप मुझे जला दो या गाड दो,या फिर कही पर फ़ेंक कर आ जाओ, मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन एक बात तय हैं की अगर आप लोगो ने मेरी भावना के अनुरूप मेरे निधन के बाद मेरा क्रियाक्रम नहीं किया तो मेरी आत्मा कभी सुखी नहीं रह सकेगी और न ही मुझे मोक्ष प्राप्त होगा, क्या मेरा शरीर पर भी मेरा अधिकार नहीं है, मैंने जिन्दगी भर आप लोगो को पाला पोसा, बड़ा किया और परिवार को चलाया , कभी किसी से कुछ नही माँगा, हमेशा परिवार के बारे मैं उनके भरण पोषण के बारे मैं ही सोंचा, अपने बारे मैं मैं कभी नहीं नहीं सोचा सिर्फ सबकी भलाई और ताजिंदगी सबकी सेवा करता रहा...अब मैं अपने निधन के बाद आप से एक तुच्छ वादा मांग रहा हु तो आप सब मिल कर मुझे देने से मना कर रहे हें,और मेरे को गलत ठहरा रहे है , यह कहा तक सत्य हैं और न्याय है. अगर आप सब मेरे लिए जीवन मैं कुछ करना चाहते हों तो मेरी भावना के क़द्र करो वर्ना आप जो चाहे वो मेरे लाश के साथ करना, कोई कहने वाला नहीं होगा...और वो उठ कर चले गए..पूरा परिवार सकते मैं आ गया, अब क्या करे, हम कुछ भी करने की स्थिती मैं नहीं थे, जो कुछ भी करना था वो तो उन्होंने (पिता) कर दिया.. फिर समय को टालते रहे , साल गुजरते गए..हम सब मैं केवल मैं और मेरे बड़े भाई ने मेरे पिता की बात का कमजोर तरीके से ही सही,दुखी मन से ही सही कुछ मन मैं यह मानस बना लिया की पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने का प्रयास करेंगे....आखिरकार १० जून १९९८ को हमारी जिन्दगी का सबसे कठिन और महनुस दिन आगया ..मैं शॉप पर बैठा हुआ था, की घर से फ़ोन आया की पापा की तबियत ख़राब हों गई हैं..८० साल की उम्र तक एक भी बार कोई दवाई नहीं लेने वाले और अंतिम समय तक काम करने वाले मेरे पिता की तबियत ख़राब हों गई है...जिन्हें लकवे ने भी घेर लिया और अपने हिम्मत से उस लकवे से भी निजात पा लेने वाले और निधन से पूर्व आधे घंटा पहले स्यमं अपने हाथो से १२०० फीट का ग्राउंड साफ़ करने वाले मेरे पिता की तबियत ख़राब हों गई है....क्या समाचार था...हॉस्पिटल लेने जाते समय ही रास्ते मैं शरीर ठंडा हों चूका था, लेकिन फिर भी डॉक्टर की राय जरूरी थी .समय ख़तम हों चूका था, डॉक्टर ने कहा की उस्ताद हमें छोड़ कर चले गए हैं.....पुरे परीवार पर व्रजप्रात हों चूका था , उस्ताद अपना काम कर फानी दुनिया को विदा कर गए.. और छोड़ गए अपने विचारो और अपने शरीर को हमारे लिए ..वो सब करने की लिए जिसके लिए उन्होंने जिन्दगी को जिया...अब कुछ करने की बारी हमारी थी...पिता की बात,उनके विचार उनका सम्मान और इच्छा की पूर्ति करने की समय आ गया..चिंता थी की अब माता को कैसे राजी करे...लेकिन देखो पिता का प्रभाव की माता ने सबसे पहले आगे बाद कर पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने का हम परिवार वाले को आदेश दिया की अपने पिता को दिए गए वादा को पूरा करो और पुरे सम्मान और आदर और गर्व के साथ उनके शरीर को चिकित्सा जगत के लिए प्रक्षिशनाथिँयो और शोधार्थियों के अध्ययन के लिए और समस्त मानव जगत के कल्याण के लिए अपने पिता के शरीर को चिकीत्सालय मैं दान कर दो. माता का यह व्यवहार और अपने पति के विचारो का यह सम्मान हमें पहली बार देखने को मिला और उनकी भावना के अनुरूप पुरे मान सम्मान के साथ गाजे बाजे के साथ और खुली गाड़ी मैं अथाह जन समुह के साथ शहर मैं उनकी शव यात्रा निकालते हुए हमने चिकित्सा जगत के भलाई के लिए मेडिकल बोर्ड को अपने पिता को सोंप दिया. आज हमें उस पिता के संतान कहलाने मैं गर्व महसूस होता है कि हमरे पिता ने वो काम कर दिखाया हैं जिससे कितने ही ऐसे विधाथीँ हैं जो उनके इस महान प्रयास से चिकित्सा सेंवा दे रहे हैं. और मानव कल्याण के कार्य को पूरा कर मेरे पिता को सच्ची श्रर्दांजन्लि दे रहे हैं.यह हमारे परिवार के लिए काफी गर्व के बात हैं और हमारे पिता जीते जी तो हमारे और सबके काम आये ही और अपने निधन के बाद भी हमारे और सारे संसार को जगमग किये हुए हैं.. एक अलख जगा गए हैं...इसके बाद भी और एक वाक्या हैं की निधन के ३ साल बाद मेरे पिता के शव को सावर्जनिक तौर पर जनता को मानव शरीर के अंगो के जानकारी देने के लिए प्रदर्शेन के लिए रखा गया था(हमारी इतनी हिम्मत नहीं थी के हम अपने पिता को इस प्रकार इतने साल बाद देख सकते थी,हम वो मेडिकल फेयर नहीं देखने गए) दोस्तों यह कहानी ,लेख मैंने इसलिए नहीं लिखी हैं के यह मेरे पिता की और हमारे परिवार की कहानी हैं बल्कि इसलिए यहाँ पर लिखी हैं के आम लोगो को देहदान,रक्तदान,नेत्रदान,और शरीर के ऐसे कई अंग हैं जिनको हम अपने निधन के बाद भी दुसरो के सेवा मैं, भलाइँ हेतु और चिकित्सा जगत मैं नए प्रयोग हेतु दान करने के लिए प्रोसाहित कर सके ,(इसमें एक तकलीफ जरूर मुझे हुई हैं की हॉस्पिटल प्रशाशन के ओर से ऐसे काम को बढ़ाने के लिए हमें कभी याद नहीं किया, उनकी ज्यादा जिम्मेदारी बनती हैं की जनता मैं जागरूकता लाने के लिए कुछ तो करे..). उनको जागरूक करना हैं ताकि हमारी आज की एवं आने वाली पीढी निरोग और स्वस्थ जीवन बिता सके अपने परिवार और माता पिता इसलिये दोस्तों अपने जीवन मे ऐसा एक काम अवश्य करो जो आपको अपने मरने के बाद बाद भी सबको याद रहे......और मानव कल्याण मैं काम आये. मैं भी प्रयासरत हु...मुझे आश्रीवाद देवै और मे कोशिश करूँगा की मेरी और सबकी संतान भी मेरे महीर्षि दधिची जैसे पिता की तरह जीवन मैं कुछ करे उनका अनुसरण करे,,और अपने परिवार और माता पिता का नाम रोशन करे ...आज की इस नई पीढी को,यूवाशक्ति को मार्गदर्शन की बहुत आवश्यकता हैं हैं...ध्यान रहे कि देश मैं कई ख़राब गलत,साम्प्रदायिँक ताकते हैं...कही वो इनको भटका न देवे... आपकी जय हों आपका संजय

Sunday, April 5, 2009

आओ शूटिंग देखे ....महाराणा प्रताप :प्रथम स्वतंत्र सेनानी


जानिये मेरे बारे मैं और कुछ ...देखिये मेरी फ़िल्म के कुछ अन्तरंग चित्र ...शायद आपको पसंद आए।
आपकी अहम् राय का इंतजार रहेगा।MAHARANA PRATAP-FIRST FREEDOM FIGHTER.This film, with its beautiful presentation gives a new message to all the self respected of the nation.The forthcoming generation will always get inspired by Maharana Pratap.This is the story of freedom fighter for the freedom and glory of Mewar. 1st cut promo also relesed of maharana pratap song's .songs sang by great bollywood singer ROOPKUMAR RATHOR,SADNA SARGAM,BHUPENDRA AND GREAT JAGJIT SINGH.
http://picasaweb.google.com/munnabhaisoni
http://www.youtube.com/watch?v=W8TazgQu3B8
http://www.youtube.com/watch?v=OSb5Lppvpbk
http://www.youtube.com/watch?v=wBEpGozbJGg
आपका
sanjay

खुल कर कहो....

दोस्तों नमस्कार,
ब्लॉग खोले हुए कुछ ही समय हुआ हैं, काफी प्रतिक्रियाए आ रही हैं, अच्छा भी लग रहा हैं, काफी लोगो ने मुझे सराहा हैं,और कुछ ने जवाब भी दिया हैं ,विरोध मैं भी प्रतिक्रिया हैं,और मै यह मानता हु की स्वाभाविक होते हुए मेरे लिए यह आवश्यक भी हैं,परन्तु ऐसे जो भी संदेश मेरे को आ रहे हैं या तो Anonymous यूज़र के द्वारा या फ़िर ऐसे व्यक्ति द्वारा भेजे जाते हैं जिनका ब्लॉग पेज तो हैं लेकिन उनसे संपर्क करने का कोई भी साधन जिसमे उनका ईं मेल एड्रेस भी नही होता हैं.ऐसे महानुभाव से मेरा निवेदन हैं के या तो अपने विचारो से किसी को प्रभावित न करे एवं या अपने मन के बात किसी पर थोपने के कोशीस न करे ,अगर करे तो पुरे खुले मन से करे, आप अपनी बात कह कर बैठ जाते हो,या छुप जाते हो यह उचित नही हैं, सामने वालो को इस बारे मैं स्पटिकरण देने अपनी बात कहने का, आप को समझाने का का मोका दीजिये , मैंने अपने ब्लॉग मैं पूर्व मैं यह लिख चुका हु के यह मेरे निजी विचार हैं, हर व्यक्ति इससे सहमत नही हो सकता, मैंने किसी को सौगध नहीं दिलाइं है की वो मेरी बात मान ही ले...अच्छी बात हैं हे की आप शायद मुझे मेरी गलती का अहसास कराते हैं की शायद मैंने ग़लत लिखा हे तो, आओ ना दोस्त पुरी बात तो करो...अपनी पहचान मत छुपाओ। खुल कर सामने आ कर कहो और दिल और दिमाग से कहो.आगे भी मेरा उन सभी ब्लोगेर से निवेदन हैं की कभी भी किसी को कोई भी अपनी प्रतिक्रिया भेजे तो तो अपने विचार की साथ अपनी पहचान भी भेजे, क्या मालूम कल कोई अच्छा रिश्ता बन जाए...
...और एक दुसरे की काम आ सके...क्यों जी सही कहा ना,
आपकी जयहो
आपका
संजय

Thursday, April 2, 2009

कहा तक बंटेंगे हम..


दोस्तों नमस्कार॥ मुफ्त मैं मिली आज़ादी का आज हम देश को क्या लोटा रहे हैं। कुछ नही, हमें अपने अधिकार का पुरा धयान हैं लेकिन कर्तय का नही। कभी हिंदू मुस्लिम के नाम पर बंटे, इसके बाद लगातार बंट हे जा रहे हैं, राजस्थान ,गुजरात,महाराष्ट्र प्रांतवाद के नाम पर, जात के नाम पर, सहर के नाम पर ,गली मुहलो के नाम पर ,फ़िर अपनी हे जात मैं गोत्र के नाम पर,.....कब तक कहा तक। इन नेताओ ने अपने फायदा के लिए आरक्षण का नाम दिया और इंसानों को बांट दिया , मैं ओ बी सी से आता हु, परुन्तु ऐसे कई विधार्थीं हैं जो जनरल केटेगरी मैं होते हुए एक्साम मैं अधिक मार्क्स लाते हैं और वो अपने सही मुकाम पर इसलिए नही पहुच पाते है क्योंके उनका अधिकार कोई और मार ले गया हैं, दो डॉक्टर जिनमे एक जेनेरल हैं जो ९०% मार्क्स लता हैं और दूसरा आरक्षित ५५ % मार्क लाता हैं ,अब आप हे सोचे के जनता का इलाज किस प्रकार से होगा। धरम के नाम पर इंसानों को इस कदर तोड़ दिया हैं की इंसानियत तो बिल्कुल मर चुकी हिं, बाहर के आंतकवादी से हमें उनता खतरा नही हैं जितना देश के अन्दर बैठे अपनों से हैं।यह अब हमको समजना होगा के अपना कोन और पराया कोन हैं, वोटो के खातिर कहे या अपना प्रभुत्व को मजबूत करने के लिए हम परिवार तक मैं टूट जाते हैं, संयुक्त परिवार के परिभाषा तो लोग भूलते ही जा रहे हैं,अपनापन ख़तम होता जा रहा हैं, नई पीढी का माता पिता का आदर सत्कार कम होता जा रहा हैं बस वो अपनी दुनिया मैं ही जी रहे हैं, जिमेदारी का अहसास हे नही रहा हैं उनमे..एक रात मैं लखपति बनना कहते हैं,इसके लिए कोई भी तरीका हो,बिना सोचे समजे फ़ैसला कर लेते हैं, उसके पीछे परिवार छाए कितना भी परेशांन क्यों न हो. आज के यूवा को अहसास ही नही हैं की उनके सामने कितना( कोम्पिटीशन)प्रतिस्पर्धा हैं,मेरे शहर मैं रिज़र्वेशन होने से ऐसे बहार के व्यक्ति चुनाव लड़ रहे हैं जिन्हें मैं जानता हे नही,लकिन वोट देना मजबूरी हैं ,मेरा ऐसा लिखने का कारन यह स्पष्ट हैं के प्रतिभा दब रही हैं एवं मुश्किलें बढ़ रही हैं। राजनीती व्यापार का रूप ले रहा हैं,और हम लगातार अलग अलग टुकडो मैं बंट रहे हैं.कई राज्य ,भाषा,धरम होने के बावजूद भी हमारी संस्कृति और संस्कार इस कारण जिन्दा हैं की अभी तक परिवार मैं बड़े बुजुगो का आश्रीवाद हैं। सारी दुनिया हिंदुस्तान को देख रही हैं, हमारी एकता और अखन्ड्ता से जलते हैं, भाई भाई से लड़ता हैं तो वो खुश होते हैं,....अब भी समय हैं की हम अपने देश के लिए कुछ करे। "देश हमें देता हैं सब कुछ,आओ हम भी कुछ देना सीखे " देश के यूवा देश के मुख्या धारा से जुडो, ..पढ़े लिखे यूवा राजनीती से जुडो, देश को बनाओ, अच्छा पढ़ कर अपनी प्रतिभा को विदेश मैं मत बेंचो, माता पिता बुजुर्गो का सम्मान कर देश की विरासत,संस्कार,संस्कृति को बचाओ.धर्म के नाम पैर जुलुसो मैं भीड़ मत बनो, अपनी पहचान स्वमं बनो ,आप देश की अमानत हो,आप हे भविष्य हो....आपकी जय हो।
संजय .

जवाब कैसे लिखू...


नमस्कार दोस्तों ।
ज्यादा समय नही हुआ हैं अपना ब्लॉग खोलै हुए , कुछ मित्रो के विचार भी आये, काफी अच्छा लगा, नया होने के कारण अपना प्रोफाइल सही नही कर सका, मैंने स्वयं ने अपने आप को भी अनुसरण सुची मैं डाल दिया , नया हु ना॥ खेर कोई बात नही, मैं उन मित्र का धन्यवाद् करता हु जिन्होंने मेरा इस और ध्यान आकर्षित किया.अब समस्या यह आ रही हैं जनाब की जिन महानुभाव ने मुझे कुछ लिखा हैं मैं उनको कुछ अपने ब्लॉग से ही लिखना चाहता हु, लकिन यह सम्भव नही हो पा रहा हैं, कृपा करके यह बताये के आपने मुझे किस तरीके से लिखा और मुझे मिला गया, वैसे हे मैं आप को कर सकू।
instat msg आप मेरे स MSN Messanger sanjaysoni@hotmail.com ya fir google talk per munnabhaisoni@gmail.com पैर संपर्क कर सकते हैं।
जय हो !!!!

संजय सोनी

आओ आपस मे एक संवाद बनाए....:

एक दुसरे को जानने का, अपने विचारो को आदान प्रदान करने का , नई जानकारी और नए मित्रो को बनाने का और अपनी भावनाओ से रूबरू कराने का आधार यह ब्लॉग हैं.आशा हैं आप इसे पसंद करेंगे .....
संजय

Tuesday, March 31, 2009

मेरे विचार...


नमस्कार दोस्तों,
खुले रूप से कुछ लिखने और अपनी भावनाओ को कागज पर उतारने के मेरी एक कोशिश है..लिखने का जो मन कुछ साल पहले होता था वो अब नही रहा ,प्रयत्न करता हु, अपने विचारो को मैं अब कितनि अच्छे तरह से आप तक रख सकू, और कहा तक आपके दिल को छु सकू, यह मैं नही कह सकता .विचारो के इस प्रवाह मैं आप को अपना साथी बना सकू...यह हे मेरी कोशिश होगी।
"हो सकता मेरे कुछ विचार आपके विचार तालमेल नही रखते हो, यह मेरे अपने निजी विचार हैं...."
लिखने के लिए कई विषय हैं ,धीरे धीरे समय पर अनेको विषय पर हम यहाँ पर मिलते ही रहेंगे...आओ लिखे, कुछ करे ..अपना बनाए ..

Thursday, February 26, 2009

MOVIE ON MAHARANA PRATAP

FIRST SEE ALL DETAIL ON MY ORKUT A/C THERE MANY PICTURE AND SEE PROMO OF MAKING OF MOVIE AND MORE. ALSO YOUTUBE AND MY ORKUT PROFILE http://www.orkut.co.in/Main#Album.aspx?uid=13472529411210340623&aid=1234948363
YOUR
SANJAY